सुधि उमड़ती रहे बदलियों की तरह । तुम झलकते रहो बिजलियों की तरह ॥ प्रभु हृदय में…
मुझे पाती लिखना सिखला दो हे प्रभु नयनों के पानी से । बतला दो कैसे शुरू करुंगा…
तिल तिल तरणी गली नहीं दिन केवट के बहुरे मधुकर वरदानों के भ्रम में ढोया शापों का…
तरुण तिमिर देहाभिमान का तुमने रचा घना मधुकर सुख दुख की छीना झपटी में चैन हुआ सपना…
वह विराम जानता न क्षण क्षण झाँक झाँक जाता मधुकर दुग्ध धवल फूटती अधर से मधुर हास्य…
उसके संग संग मिट जाते सभी उदासी स्वर मधुकर फूल हॅंसी के नभ से भू पर झरते…