अगणित जन्मों की ले दारुण कर्मश्रृंखलायें मधुकरजब जो भी दीखता उसी से व्याकुल पूछ रहा निर्झरउसका कौन…
आह्लादित अंतर वसुंधरा दृग मोती ले ले मधुकरभावतंतु में गूंथ हृदय की मधुर सुमन माला निर्झरपिन्हा ग्रीव…
किससे मिलनातुर निशि वासर व्याकुल दौड़ रहा मधुकर सच्चे प्रभु के लिये न तड़पा बहा न नयनों…