कहते थे हे प्रिय! “स्खलित-अम्बरा मुग्ध-यौवना की जय हो ।अँगूरी चिबुक प्रशस्त भाल दृग अरूणिम अधर हास्यमय…
सुधि करो कहा था,”कभीं निभृत में सजनी! तेरा घूँघट-पट।निज सिर पर सरका लूँ फ़िर चूमूँ नत-दृग अधर-सुधा…
कहते थे प्राण “अरी, तन्वी! मैं कृष कटि पर हो रही विकल ।कह रही करधनी ठुनक-ठुनक रो…
था कहा “पिंजरित कीर मूक है हरित पंख में चंचु छिपा।विधु-नलिन-नेत्र-मुद्रित-रजनी-मुख रहा चूम तम केश हटा।क्या तुमने…